भारत में ईसा मसीह का प्रवास और भगवान श्री कृष्ण से तादात्म्य
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ईसा मसीह के भारत प्रवास और योग-साधना के दावे.
कृष्ण और क्राइस्ट के नाम व दर्शन की तुलना.
बाइबिल के ‘मिसिंग ईयर्स’ पर ऐतिहासिक दृष्टि.
Jabalpur / स्वामी परमहंस योगानंद की किताब "द सेकंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट : द रिसरेक्शन ऑफ़ क्राइस्ट विदिन यू" में यह दावा किया गया है कि यीशु ने भारत में कई वर्ष बिताये और यहां योग तथा ध्यान साधना की। इस पुस्तक में यह भी दावा किया गया है कि 13 से 30 वर्ष की अपनी उम्र में ईसा मसीह ने भारतीय ज्ञान दर्शन और योग का गहन अध्ययन व अभ्यास किया। ईसा मसीह ने जगन्नाथपुरी का भ्रमण किया, वहां पुरोहितों ने उनका भव्य स्वागत किया, वह 6 वर्ष रहे। वहां रहकर उन्होंने वेद और मनुस्मृति का अपनी भाषा में अनुवाद भी किया।
ईसा मसीह के भारत आने की जानकारी एक जर्मन विद्वान होल्गर कस्टर्न ने 1981 में अपने गहन अनुसंधान के आधार पर एक पुस्तक "जीसस लिव्ड इन इंडिया : हिज लाइफ बिफोर एंड आफ्टर क्रूसिफिकेशन" में भी लिखी है। हेमिस बौद्ध आश्रम लद्दाख के लेह मार्ग में स्थित है,और पुस्तक के अनुसार ईसा मसीह सिल्क रुट से ही भारत आए थे।
लुईस जेकोलियत (Louis Jacolliot) ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक 'द बाइबिल इन इंडिया' (The Bible in India, or the Life of Jezeus Christna) में लिखा है कि जीसस और भगवान श्रीकृष्ण एक थे।
लुईस जेकोलियत फ्रांस के एक साहित्यकार और वकील थे। इन्होंने अपनी पुस्तक में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। 'जीसस' शब्द के विषय में लुईस ने कहा है कि क्राइस्ट को 'जीसस' नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है, इसका संस्कृत में अर्थ होता है 'मूल तत्व'। वस्तुतः यह शब्द संस्कृत से उद्भूत है, जिसका अर्थ भगवान होता है। एक दूसरी मान्यता अनुसार बौद्ध मठ में उन्हें ईशा नाम मिला जिसका अर्थ है मालिक या स्वामी! ईश या ईशान शब्द का प्रयोग भगवान शंकर के लिए भी किया जाता है।
इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि 'क्राइस्ट' शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह 'क्रिसना' शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। यह क्रिसना ही यूरोप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया, बाद में यही क्रिश्चियन हो गया। लुईस के अनुसार ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान भगवान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे।
एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक 'द लाइफ ऑफ संत ईसा' पर आधारित फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट' नामक पुस्तक लिखी है। इसमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है।
इसकी पुष्टि भी इस बात से की जा सकती है कि यह सर्वविदित है, कि ईसा मसीह के जीवन के 18 वर्षों का विवरण 'न्यू टेस्टामेंट' में नहीं मिलता है। ईसा मसीह के जीवन के इन गुमनाम सालों को 'साइलेंट ईयर्स', 'लॉस्ट ईयर्स' या 'मिसिंग ईयर्स' भी कहा जाता है। जीसस के जीवन के इतिहास में 13 की उम्र से 29 तक की उम्र का बाइबिल में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। बीबीसी की एक डॉक्युमेंट्री में बताया गया था कि ईसा मसीह एक बौद्ध भिक्षु थे।
हालांकि, इससे पहले भी कई किताबों में जीसस के भारत आने की बात कही जा चुकी थी।भारतीय दार्शनिक ओशो(आचार्य रजनीश )ने भी ईसा मसीह के भारत से संबंधित होने की बात कही है।
ओशो के मुताबिक "जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है, अनायास ही वह भारत में उत्सुक हो उठता है, अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है और यह केवल आज की ही बात नहीं है,आज से 2500 वर्ष पूर्व, सत्य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था,ईसा मसीह भी भारत आए थे।"
ओशो के मुताबिक, ईसामसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के बीच का बाइबिल में कोई उल्लेख नहीं है और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्योंकि 33 वर्ष की उम्र में तो उन्हें सूली ही चढ़ा दिया गया था। तेरह से 30 तक 17 सालों का हिसाब बाइबिल से गायब है! इतने समय वे कहां रहे? आखिर बाइबिल में उन सालों को क्यों नहीं रिकार्ड किया गया? उन्हें जानबूझ कर छोड़ा गया है, कि ईसाईयत मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वे उसे भारत से लाए हैं।"
डॉ.आनंद सिंह राणा.
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।